क्रिया - जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध हो उसे क्रिया कहते हैं।
क्रिया एक विकारी शब्द हैं।
जैसे:
उपर्युक्त वाक्यों में लिखता है, जाता है, क्रिया हैं।
हिन्दी का मूल आधार संस्कृत है। "क्रिया के मूलरूप को धातु कहते हैं" धातु के अन्त में "ना" लगाने से जो शब्द बनता है उसे क्रिया कहते हैं।
जैसे:
हिन्दी में क्रिया के मुख्यतः दो भेद होते हैं।
जब क्रिया के साथ कर्म का प्रयोग हो या कर्म के होने की संभावना हो तब वहाँ सकर्मक क्रिया होता है।
जैसे:
📌 सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान - क्या और किसको लगाकर प्रश्न करते हैं। यदि दोनों का उत्तर मिले तो सकर्मक क्रिया होगी यदि उत्तर न मिले तो अकर्मक क्रिया होगी।
जब क्रिया के साथ कर्म का प्रयोग न हो तब उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे:
संरचना के आधार पर क्रिया को 4 निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है।
जब कर्ता कोई कार्य स्वयं न करके किसी दूसरे से करवाता है या कराने की प्रेरणा देता है तब उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
प्रेरणार्थक क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं:
→ प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया का निर्माण 'ना' लगाकर तथा द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया का निर्माण 'वाना' लगाकर किया जाता है।
जैसे:
| मूल क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया | द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया |
|---|---|---|
| लिखना | लिखाना | लिखवाना |
| पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
| चलना | चलाना | चलवाना |
| सोना | सुलाना | सुलवाना |
जब एक से अधिक क्रियाएँ मिलकर किसी कार्य को पूरा करती है तब उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे:
जब एक क्रिया को पूर्ण करने के बदले उसी कर्ता किसी दूसरे कार्य में लग जाता है तब उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
जैसे:
अनुकरणवाची क्रियाओं का निर्माण इस प्रकार होता है।
जैसे: