अलंकार

अलंकार
अलम्
सजावट
कार
करने वाला

अलंकार दो शब्दो अलम् और कार से मिलकर बना है अलम् का अर्थ है सजावट तथा कार का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार अलंकार का शाब्दिक अर्थ है- सजावट करने वाला। तात्पर्य यह कि- काव्य की वह तत्व जो उसकी सजावट करे उसे अलंकार कहते हैं।

"अलंकरोति इति अलंकार:"

अर्थात् जो अलंकारित करे वहाँ अलंकार है। जिस प्रकार आभूषण पहनने से व्यक्ति का शारीरिक सौन्दर्य बढ़ जाता है उसी प्रकार काव्य में अलंकरों के प्रयोग से उसका सौन्दर्य बढ़ जाता है।

📝 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' ने अलंकार को वर्णन की एक विधा माना हैं।

गुणों के आधार पर अलंकार को 3 भागों में बांटा गया है:

1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
3. उभयालंकार
शब्दालंकार

जहाँ पर काव्य में शब्दों के माध्यम से चमत्कार पाया जाता है वहाँ शब्दालंकार होता हैं।

शब्दालंकार के भेद
अनुप्रास
यमक
श्लेष
वक्रोक्ति
1. अनुप्रास अलंकार

अनुप्रास दो शब्दो अनु और प्रास से मिलकर बना है अनु का अर्थ बार-बार तथा प्रास का अर्थ वर्णों की आवृत्ति। तात्पर्य यह कि- वर्णों की आवृत्ति को ही अनुप्रास कहते हैं।

📌 अनुप्रास अलंकार के 5 भेद होते हैं।
छेकानुप्रास
वृत्यानुप्रास
लाटानुप्रास
श्रुत्यानुप्रास
अंत्यानुप्रास

A. छेकानुप्रास अलंकार

जहाँ पर किसी वर्ण की आवृत्ति क्रम से केवल दो बार आये वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।

कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन रामु हृदय गुनि।।

स्पष्टीकरण:

उपर्युक्त उदाहरण के कंकन और किंकन के, क, क की आवृत्ति क्रमशः दो बार हुआ है अतः यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।

B. वृत्यानुप्रास अलंकार

वृत्य का अर्थ है- घेरा, तात्पर्य यह कि जहाँ पर एक वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।

रनि नुजा माल रुवर बहुछाये

स्पष्टीकरण:

उपर्युक्त उदाहरण में वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हुआ है अतः यहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार है।

C. लाटानुप्रास अलंकार

लाट का अर्थ है - समूह जहाँ पर वाक्यों की आवृत्ति हो तथा उनका अर्थ भी समान प्रतीत हो परन्तु अन्वय करने पर उनके अर्थ बदल जाए वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। यह यमक का उल्टा होता है।

'पूतपूत तो का धन संचय।
पूतपूत तो का धन संचय।।'

D. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

श्रृत्यानुप्रास अलंकार का अर्थ है जो सुनने में अनुप्रास लगे तात्पर्य यह कि जिस पंक्ति में वर्णों के उच्चारण स्थान एक ही जगह से होते है वहाँ पर श्रृत्यानुप्रास अलंकार होता है।

तेहि निसि में सीता पहँ जाई।
त्रिजटा कहि सब कथा सुनाइ।।

स्पष्टीकरण:

उपर्युक्त उदाहरण में तेहि निसि तथा सीता में त, स, का उच्चारण स्थान एक ही अर्थात् दंत है। अतः यहाँ पर श्रृत्यानुप्रास अलंकार है।

E. अंत्यानुप्रास अलंकार

अंत्यानुप्रास का अर्थ है - अंत में आने वाला अनुप्रास। तात्पर्य यह कि जिस छंद के चरणांत में दोनो वर्ण समान हो वहाँ पर अंत्यानुप्रास अलंकार होता है।

📌 अंत्यानुप्रास अलंकार को तुक अलंकार के नाम से जाना जाता है।
मेरे मन के मीत मनोहर। (तुक)
तुम हो प्रियवर मेरे सहचर।।

स्पष्टीकरण:

उपर्युक्त उदाहरण में मनोहर तथा सहचर शब्द में र वर्ण आया हुआ है। अतः यहाँ पर अंत्यानुप्रास या तुक अलंकार होगा।

2. यमक अलंकार

यमक का अर्थ है- युग्म या जोड़ा, तात्पर्य यह कि- जहाँ पर एक ही शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है।

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
पा खाये बौराय जग या पाये बौराय।।

स्पष्टीकरण:

उपर्युक्त उदाहरण में कनक-कनक शब्द दो बार आया है इसमें पहले कनक का अर्थ धतूरा तथा दूसरे कनक का अर्थ-सोना है। शब्दो के आवृत्ति के बाद इनके अर्थ अलग-अलग है अतः यह यमक अलंकार है।

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
करका मनका डार के मनका मनका फेर।।

स्पष्टीकरण:

इस उदाहरण में "माला" और "मनका" शब्दों का प्रयोग अलग-अलग अर्थों में हुआ है। पहला मनका का अर्थ माला का दाना और दूसरा मनका का अर्थ मन का (हृदय का) हैं

3. श्लेष अलंकार

श्षेल श्लिष्ट धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ है चिपका हुआ। तात्पर्य यह कि- जहाँ पर कोई शब्द एक बार आये परन्तु उसके कई अर्थ हो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

चरन-धरत चिंता करत, चितवत चारो ओर।
सुबरन को खोजत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर।।

स्पष्टीकरण:

🔑 यहाँ 'सुबरन' शब्द एक बार आया है, पर इसके तीन अर्थ हैं:
  • कवि के संदर्भ में: सुंदर वर्ण/अक्षर
  • व्यभिचारी के संदर्भ में: सुंदर स्त्री (गौर वर्ण)
  • चोर के संदर्भ में: सोना
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे मोती मानुस चून।।

स्पष्टीकरण:

🔑 यहाँ दूसरी पंक्ति में 'पानी' शब्द एक बार आया है, जिसके तीन अर्थ हैं:
  • मोती के संदर्भ में: कांति (चमक)
  • मानुस (मनुष्य) के संदर्भ में: प्रतिष्ठा (इज्जत)
  • चून (चूना/आटा) के संदर्भ में: जल
4. वक्रोक्ति अलंकार

वक्रोक्ति दो शब्दों वक्र तथा उक्ति से मिलकर बना है। वक्र का अर्थ है - टेढ़ा मेढ़ा तथा उक्ति का अर्थ है कथन। इस प्रकार वक्रोक्ति का अर्थ हुआ टेढा कथन।

तात्पर्य यह कि जहाँ पर बात किसी आशय से कही जाए तथा उससे सुनने वाला किसी दूसरे आशय में समझे तो वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।

को तुम हो इति आए कहाँ, घन श्याम है तो कितहुँ बरसो।
नहि मन मोह है प्रिय, फिर क्यों पकरत पाय।
अर्थालंकार

जहाँ पर काव्य में अर्थों के माध्यम से चमत्कार पाया जाय वहाँ पर अर्थालंकार होता है। अर्थालंकार के निम्नलिखित भेद हैं।

1. उपमा अलंकार

उपमा दो शब्दों उप और मा से मिलकर बना है। उप का अर्थ है - पास या समीप तथा मा का अर्थ है - मापना या तोलना। इस प्रकार उपमा शब्द का अर्थ हुआ, दो वस्तुओं को एक-दूसरे के समीप रखकर तोलना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं के रूप, गुण तथा आकृति को लेकर समानता दर्शायी जाए वहाँ उपमा अलंकार होता है।

📌 इसमें सा, सी शब्द का प्रयोग होता है।
उपमा अलंकार के 4 अंग है:
  1. उपमेय
  2. उपमान
  3. साधारण धर्म
  4. वाचक

अंगों का विवरण:

1. उपमेय - जिस वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाए उसे उपमेय कहते हैं।

2. उपमान - जिस वस्तु/व्यक्ति से तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं।

3. साधारण धर्म - जिस गुण, लक्षण या विशेषता के आधार पर उपमेय और उपमान में समानता दर्शायी जाए उसे साधारण धर्म कहते हैं।

4. वाचक - उपमेय और उपमान की तुलन या समानता प्रदर्शित करने वाले शब्द को वाचक कहते हैं।

जैसे- सम, समान, सदृश, सरीखे, सा, सी, से, इत्यादि वाचक सूचक शब्द हैं।

कृष्ण के नेत्र कमल के समान सुंदर हैं।
उपमेय: कृष्ण के नेत्र
उपमान: कमल
वाचक: समान
साधारण धर्म: सुंदर
सीता का मुख चन्द्रमा के समान सुंदर है।
उपमेय: सीता का मुख
उपमान: चन्द्रमा
वाचक: समान
साधारण धर्म: सुंदर
पीपर पात सरिस मन डोला
उपमान: पीपर पात
वाचक: सरिस
उपमेय: मन
साधारण धर्म: डोला (चंचलता)
2. रूपक अलंकार

जहाँ पर उपमेय को उपमान मान लिया जाए अर्थात् उपमेय और उपमान में कोई भेद न बताया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है।

📌 रूपक अलंकार में अधिकांशतः योजक चिह्न (-) का प्रयोग होता है।
बीती विभावरी जाग री
अम्बर पनघट में डुबो रही, ताराघट ऊषा नागरी।

स्पष्टीकरण:

यहाँ अम्बर तारा और ऊषा (उपमेय) पर क्रमशः पनघट और नागरी (उपमान) का आरोप हुआ है। इस उदाहरण मे वाचक का प्रयोग नही हुआ है तथा उपमेय और उपमान में समानता दिखाते हुए दोनों का साथ-साथ वर्णन हुआ है। अतः यहाँ पर रूपक अलंकार है।

उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरषै लोचन भृंग।।
चरण कमल बंदौ हरिराई।
उपमेय: चरण
उपमान: कमल
3. उत्प्रेक्षा अलंकार

उत्प्रेक्षा का अर्थ है - अनुमान या सम्भावना प्रकट करना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर उपमेय में कल्पित उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

📌 मनु, मानो, जनु, जानो, जान हुँ इत्यादि उत्प्रेक्षा सूचक शब्द आते हैं।
सोहत ओढ़ै पीत पट श्याम सलोने गात।
मनो नील मणि शैल पर आतप परयौ प्रभात।।
उस काल मारे क्रोध त न काँपने लगा।
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।।
4. अतिश्योक्ति अलंकार

अतिश्योक्ति दो शब्दो अतिशय और उक्ति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाए वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है।

हनुमान के पूँछ ने लगन न पायी आग।
सारी लंका जल गयी, गये निशाचर भाग।।
विधि हरि हर कवि कोविद बानी।
कहत साधु महिमा सकुचानी।।
5. संदेह अलंकार

जहाँ पर किसी वस्तु को देखकर उसकी वास्तविक स्थिति के विषय में संदेह हो जाए वहाँ संदेह अलंकार होता है।

सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही कि नारी है कि नारी ही की सारी है।।
तुम हो अखिल विश्व मे,
या यह अखिल विश्व तुम में,
अथवा अखिल विश्व तुम एक।
6. भ्रांतिमान अलंकार

जहाँ किसी वस्तु को देखकर उस वस्तु की वास्तविक स्थित के बारे मे भ्रम उत्पन्न हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।

पाँइ महावर दैन की नाइन बैठी आइ।
फिर-फिर जानि महावरी एड़ी भीड़ित जाइ।।
7. अन्योक्ति अलंकार

अन्योक्ति दो शब्दो अन्य और उक्ति से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है अन्य के प्रति कहा गया उक्ति या कथन। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर कोई बात कही किसी के लिए जाए और लागू किसी दूसरे पर हो जाए वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहि विकास यहि काल
अलि-कली ही सौबंधो आगे कौन हवाल।।
उभयालंकार

उभय का अर्थ है - दोनो। तात्पर्य यह कि जहाँ पर शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनो के गुण पाये जाये वहाँ उभयालंकार होता है।

समय जा रहा और काल है आ रहा।
सचमुच उल्टा भाव भुवन मे छा रहा।।