अलंकार दो शब्दो अलम् और कार से मिलकर बना है अलम् का अर्थ है सजावट तथा कार का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार अलंकार का शाब्दिक अर्थ है- सजावट करने वाला। तात्पर्य यह कि- काव्य की वह तत्व जो उसकी सजावट करे उसे अलंकार कहते हैं।
अर्थात् जो अलंकारित करे वहाँ अलंकार है। जिस प्रकार आभूषण पहनने से व्यक्ति का शारीरिक सौन्दर्य बढ़ जाता है उसी प्रकार काव्य में अलंकरों के प्रयोग से उसका सौन्दर्य बढ़ जाता है।
गुणों के आधार पर अलंकार को 3 भागों में बांटा गया है:
जहाँ पर काव्य में शब्दों के माध्यम से चमत्कार पाया जाता है वहाँ शब्दालंकार होता हैं।
अनुप्रास दो शब्दो अनु और प्रास से मिलकर बना है अनु का अर्थ बार-बार तथा प्रास का अर्थ वर्णों की आवृत्ति। तात्पर्य यह कि- वर्णों की आवृत्ति को ही अनुप्रास कहते हैं।
📌 अनुप्रास अलंकार के 5 भेद होते हैं।जहाँ पर किसी वर्ण की आवृत्ति क्रम से केवल दो बार आये वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उपर्युक्त उदाहरण के कंकन और किंकन के, क, क की आवृत्ति क्रमशः दो बार हुआ है अतः यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।
वृत्य का अर्थ है- घेरा, तात्पर्य यह कि जहाँ पर एक वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहुछाये
उपर्युक्त उदाहरण में त वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हुआ है अतः यहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार है।
लाट का अर्थ है - समूह जहाँ पर वाक्यों की आवृत्ति हो तथा उनका अर्थ भी समान प्रतीत हो परन्तु अन्वय करने पर उनके अर्थ बदल जाए वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। यह यमक का उल्टा होता है।
श्रृत्यानुप्रास अलंकार का अर्थ है जो सुनने में अनुप्रास लगे तात्पर्य यह कि जिस पंक्ति में वर्णों के उच्चारण स्थान एक ही जगह से होते है वहाँ पर श्रृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उपर्युक्त उदाहरण में तेहि निसि तथा सीता में त, स, का उच्चारण स्थान एक ही अर्थात् दंत है। अतः यहाँ पर श्रृत्यानुप्रास अलंकार है।
अंत्यानुप्रास का अर्थ है - अंत में आने वाला अनुप्रास। तात्पर्य यह कि जिस छंद के चरणांत में दोनो वर्ण समान हो वहाँ पर अंत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उपर्युक्त उदाहरण में मनोहर तथा सहचर शब्द में र वर्ण आया हुआ है। अतः यहाँ पर अंत्यानुप्रास या तुक अलंकार होगा।
यमक का अर्थ है- युग्म या जोड़ा, तात्पर्य यह कि- जहाँ पर एक ही शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है।
उपर्युक्त उदाहरण में कनक-कनक शब्द दो बार आया है इसमें पहले कनक का अर्थ धतूरा तथा दूसरे कनक का अर्थ-सोना है। शब्दो के आवृत्ति के बाद इनके अर्थ अलग-अलग है अतः यह यमक अलंकार है।
इस उदाहरण में "माला" और "मनका" शब्दों का प्रयोग अलग-अलग अर्थों में हुआ है। पहला मनका का अर्थ माला का दाना और दूसरा मनका का अर्थ मन का (हृदय का) हैं
श्षेल श्लिष्ट धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ है चिपका हुआ। तात्पर्य यह कि- जहाँ पर कोई शब्द एक बार आये परन्तु उसके कई अर्थ हो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
वक्रोक्ति दो शब्दों वक्र तथा उक्ति से मिलकर बना है। वक्र का अर्थ है - टेढ़ा मेढ़ा तथा उक्ति का अर्थ है कथन। इस प्रकार वक्रोक्ति का अर्थ हुआ टेढा कथन।
तात्पर्य यह कि जहाँ पर बात किसी आशय से कही जाए तथा उससे सुनने वाला किसी दूसरे आशय में समझे तो वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
जहाँ पर काव्य में अर्थों के माध्यम से चमत्कार पाया जाय वहाँ पर अर्थालंकार होता है। अर्थालंकार के निम्नलिखित भेद हैं।
उपमा दो शब्दों उप और मा से मिलकर बना है। उप का अर्थ है - पास या समीप तथा मा का अर्थ है - मापना या तोलना। इस प्रकार उपमा शब्द का अर्थ हुआ, दो वस्तुओं को एक-दूसरे के समीप रखकर तोलना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं के रूप, गुण तथा आकृति को लेकर समानता दर्शायी जाए वहाँ उपमा अलंकार होता है।
1. उपमेय - जिस वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाए उसे उपमेय कहते हैं।
2. उपमान - जिस वस्तु/व्यक्ति से तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं।
3. साधारण धर्म - जिस गुण, लक्षण या विशेषता के आधार पर उपमेय और उपमान में समानता दर्शायी जाए उसे साधारण धर्म कहते हैं।
4. वाचक - उपमेय और उपमान की तुलन या समानता प्रदर्शित करने वाले शब्द को वाचक कहते हैं।
जैसे- सम, समान, सदृश, सरीखे, सा, सी, से, इत्यादि वाचक सूचक शब्द हैं।
जहाँ पर उपमेय को उपमान मान लिया जाए अर्थात् उपमेय और उपमान में कोई भेद न बताया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है।
यहाँ अम्बर तारा और ऊषा (उपमेय) पर क्रमशः पनघट और नागरी (उपमान) का आरोप हुआ है। इस उदाहरण मे वाचक का प्रयोग नही हुआ है तथा उपमेय और उपमान में समानता दिखाते हुए दोनों का साथ-साथ वर्णन हुआ है। अतः यहाँ पर रूपक अलंकार है।
उत्प्रेक्षा का अर्थ है - अनुमान या सम्भावना प्रकट करना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर उपमेय में कल्पित उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
अतिश्योक्ति दो शब्दो अतिशय और उक्ति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहना। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाए वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
जहाँ पर किसी वस्तु को देखकर उसकी वास्तविक स्थिति के विषय में संदेह हो जाए वहाँ संदेह अलंकार होता है।
जहाँ किसी वस्तु को देखकर उस वस्तु की वास्तविक स्थित के बारे मे भ्रम उत्पन्न हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
अन्योक्ति दो शब्दो अन्य और उक्ति से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है अन्य के प्रति कहा गया उक्ति या कथन। तात्पर्य यह कि - जहाँ पर कोई बात कही किसी के लिए जाए और लागू किसी दूसरे पर हो जाए वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उभय का अर्थ है - दोनो। तात्पर्य यह कि जहाँ पर शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनो के गुण पाये जाये वहाँ उभयालंकार होता है।