रस सिद्धांत

रस का परिचय

"इस्यते इति रस:"
अर्थात जो प्रवाहित हो वही रस है। रस का प्रयोग काव्यों में होता है और इसे काव्य की आत्मा भी कहते हैं।

रस के अंग या चरण या सोपान

रस के चार अंग होते हैं:

  1. विभाव
  2. अनुभाव
  3. संचारी भाव
  4. स्थायी भाव

आचार्य भरतमुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्यशास्त्र में रस के केवल तीन अंग (विभाव, अनुभाव, संचारी भाव) का ही उल्लेख किया है। उन्होंने स्थायी भाव को रस के अंत के रूप में नहीं स्वीकार किया है।

1️⃣ विभाव

विभाव दो शब्दों वि+भाव से मिलकर बना है।

  • वि का अर्थ है विशेष
  • भाव का अर्थ है भावना

विभाव के दो भेद हैं:

  1. आलम्बन: आधार - जिस पर रस दिखता है।
    • आश्रय: जिसके ह्रदय या मन में भाव जगे
    • विषय: जिसके प्रति भाव जगे
  2. उद्दीपन: तीव्र करना - जिन घटनाओं या परिस्थितियों को देखकर स्थायी भाव उत्पन्न होता है।

2️⃣ अनुभाव

अनुभाव दो शब्दों अनु और भाव से मिलकर बना है।

  • अनु का अर्थ है पीछे
  • भाग का अर्थ है भावना

🖝 अनुभाव के चार भेद हैं:

  1. कायिक अनुभाव/आंगिक अनुभाव: नायक-नायिका की शारीरिक चेष्टा
  2. वाचिक अनुभाव: नायक-नायिका की वाणी का सहारा
  3. आहार्या अनुभाव: वस्त्रों के आकर्षण का सहारा
  4. सात्विक अनुभाव/मानसिक अनुभाव: स्वाभाविक रूप से ह्रदय या मन में उत्पन्न होने वाले चेष्टठाएँ

3️⃣ संचारी भाव

संचारी का अर्थ है संचरण करना या बहना।
संचारी भाव को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।

  • संचारी भाव की कुल संख्या 33 है।

4️⃣ स्थायी भाव

जो भाव मन में पूरी तरह से रच-बस जाए उसे स्थायी भाव कहते हैं। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है।

रस के भेद

रस के मूलतः 9 भेद हैं। इसे नौरस के नाम से भी जाना जाता है।

🖝 रस तथा उनके स्थायी भाव:

रस भाव
श्रृंगार रस रति
हास्य रस हास
करुण रस शोक
रौद्र रस क्रोध
वीर रस उत्साह
भयानक रस भय
वीभत्स रस जुगुत्सा (घृणा)
अद्भुत रस विस्मय / आश्चर्य
शांत रस शम/निर्वेद
वत्सल रस वात्सल्य/रति
भक्ति रस भक्ति भावना

📌 वत्सल रस और भक्ति रस श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आ जाते हैं, इसलिए रसों की संख्या 9 मानी जाती है।

👨‍🏫 आचार्य भरतमुनि रस सिद्धांतों के प्रणेता माने जाते हैं।

📚 आचार्य भरतमुनि ने केवल 8 रसों का ही उल्लेख किया है। उन्होंने शांत रस को रस के रूप में स्वीकार नहीं किया है।

रसों का विवरण

1️⃣ श्रृंगार रस

श्रृंगार का अर्थ है कामोद्दीपन। नायक-नायिका के प्रेम सम्बन्धों का वर्णन।

श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं:

  1. संयोग श्रृंगार रस: नायक-नायिका के मिलन का वर्णन
    • Example: "बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय। सौहं करै भौहनि हँसै दैन कहै नति जाय।।"
  2. वियोग श्रृंगार रस: नायक-नायिका का वियोग
    • Example: "हे खग हे मृग मधुकर श्रोनी। तुमने क्या देखी सीता मृग नैनी"

2️⃣ हास्य रस

जहाँ किसी घटना को देखकर हंसी का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "तम्बूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप। राग मिलै पन्द्रह मिनट घण्टा भर अलाप।। घण्टा भर अलाप राग में मारा गोता। धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे स्रोता।।"
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3️⃣ करुण रस

जहाँ किसी घटना को देखकर शोक का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "देखि सुदामा की दीन दशा। करुणा करके करुणा निधि रोये। पानी परात से हाथ छुए नहीं। नयनन से अँसुए पद धौये।।"

4️⃣ रौद्र रस

जहाँ किसी घटना को देखकर क्रोध का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "रे नृप बालक काल बस बोलत तोहिं नरहिं सँभार। धनुही सम त्रिपुरारि धनु विदित सकाल संसार।।"

5️⃣ वीर रस

जहाँ किसी घटना को देखकर उत्साह का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे। युद्ध में यमराज से भी प्रस्तुत सदा मानो मुझे। है और की तो बात क्या गर्व मै करता नहीं। माता और निज तात से भी समर में डरता नहीं।।"

6️⃣ भयानक रस

जहाँ किसी घटना को देखकर भय या डर का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालों-सी। चली आ रही फेन उगलती फन फैलाये ब्यालों सी।।"

7️⃣ वीभत्स रस

जहाँ किसी घटना को देखकर घृणा का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "रवि के दारुणा आतप से झुलसी धरती की घासे। सर्दी-गर्मी में सड़-सड़ कर बजबजा रही थी लाशे।। आँखे निकाल उड़ जाते छड़ भर उड़कर आ जाते। राख जीभ खींच-खींच कर कौवे चुबला-चुबला कर खाते है||"

8️⃣ अद्भुत रस

जहाँ किसी घटना को देखकर विस्मय या आश्चर्य का भाव उत्पन्न हो।

  • Example: "एक अचम्भा देखा रे भाई ठाढ़ा सिंह चरावै गाइ पहले पूत पीछे भइ भाई चेला के गुरु लागै पाँइ।।"

9️⃣ शांत रस

जहाँ किसी घटना को देखकर वैराग्य की भावना उत्पन्न हो और ह्रदय को शान्ति मिले।

  • Example: "जा दिन मन पंक्षी उड़ जैहैं। ता दिन तेरे तन तरुवर सबै पात झरि जैहैं या देही पे गरब न कीजै स्वान काग गिद्ध खै हैं।"