समास का अर्थ है संक्षिप्त करना। कम करना या घटाना।
दो या दो से अधिक पदों के संक्षिप्त करण की प्रक्रिया को समास कहते हैं तथा इसके परिणाम स्वरुप बने पद को समस्त पद या सामासिक पद के नाम से जाना जाता हैं।
ध्यान रहे कि- समास में गौड़ पदों का संक्षिप्तीकरण होता हैं मुख्य पदों का नहीं।
जैसे- लव और कुश का संक्षिप्त रुप लवकुश है। इसमें लव-कुश समस्त या सामासिक पद है। इसी प्रकार 'विधान के लिए सभा' का संक्षिप्त रुप विधानसभा हैं। यहाँ विधानसभा समस्त या सामासिक पद हैं।
समास में पद दो प्रकार के होते हैं:
समस्त या सामासिक पदों को अलग-अलग करने को विग्रह कहते हैं। विग्रह के परिणामस्वरुप मध्यवर्ती पदों की पुनः प्राप्ति हो जाती हैं।
जैसे- विधानसभा का विग्रह = विधान के लिए सभा
समास के मुख्यतः चार भेद हैं:
इस समास में पहला पद (पूर्वपद) अव्यय होता हैं तथा उसी पद की प्रधानता होती हैं।
अव्यय का अर्थ: जो व्यय न हो या जो खर्च न हो। तात्पर्य यह कि- जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन या बदलाव न हो उसे अव्यय कहते हैं।
मुख्य अव्यय सूचक शब्द: यथा, प्रति, उप, आ, ब, बे, बा इत्यादि।
| Sr. No. | समस्त या सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|---|
| 1 | यथाशीघ्र | जितना शीघ्र हो |
| 2 | यथाक्रम | क्रम के अनुसार |
| 3 | प्रत्येक (प्रति+एक) | एक-एक / हर एक |
| 4 | उपकूल | कूल (किनारे) के निकट |
| 5 | आजन्म | जन्मपर्यंत (जन्म से लेकर) |
| 6 | बेशर्म | बिना शर्म के |
| 7 | बेइज्जत | बिना इज्जत के |
| 8 | बदस्तूर | दस्तूर के साथ |
| 9 | बाइज्जत | इज्जत के साथ |
| 10 | यावज्जीवन | जब तक जीवन हैं। |
| 11 | व्यर्थ | बिना अर्थ का |
| 12 | भरपेट | पेट भरकर |
तत्पुरुष समास में दूसरा पद (उत्तर पद) की प्रधानता होती हैं।
इसके समस्त या सामासिक पद किसी न किसी कारक चिन्ह (विभक्ति) से जुड़े होते हैं। तथा विग्रह करने पर इन कारक चिन्हों की प्राप्ति होती हैं।
हिन्दी में कारकों की संख्या 8 होती हैं।
| कारक | विभक्ति चिन्ह |
|---|---|
| 1. कर्ता | ने |
| 2. कर्म | को |
| 3. करण | से, द्वारा (साधन के अर्थ में) |
| 4. सम्प्रदान | को, के लिए |
| 5. अपादान | से (अलगाव के अर्थ में) |
| 6. संबंध | का, की, के, रा, री, रे |
| 7. अधिकरण | में, पर |
| 8. संबोधन | हे, हो, अरे, अजी |
परन्तु तत्पुरुष समास में केवल 6 कारकों (कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबन्ध, अधिकरण) का ही प्रयोग होता हैं। इसमें कर्ताकारक तथा सम्बोधन कारक का प्रयोग नहीं होता हैं।
विभक्तियों के चिन्हों के आधार पर ही तत्पुरुष समास का नामकरण किया गया हैं। इस प्रकार विभक्ति के आधार पर तत्पुरुष समास के 6 भेद हैं:
i. कर्म तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'को')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| स्वर्ग प्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
| गृहागत | गृह को आगत |
| पाकेटमार | पाकेट को मारने वाला |
| तेलचट्टा | तेल को चाटने वाला |
ii. करण तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'से', 'द्वारा')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत |
| बाढ़ पीड़ित | बाढ़ से पीड़ित |
| अकाल पीड़ित | अकाल से पीड़ित |
| ईश्वर प्रदत्त | ईश्वर द्वारा प्रदत्त |
iii. सम्प्रदान तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'के लिए')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| विधानसभा | विधान के लिए सभा |
| रसोईघर | रसोई के लिए घर |
| विद्यालय | विद्या के लिए आलय |
| देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
iv. अपादान तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'से' - अलगाव)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| नेत्रहीन | नेत्र से हीन |
| जन्मांध | जन्म से अन्धा |
| पदच्युत | पद से च्युत (हटाया हुआ) |
| देश निकाला | देश से निकाला |
| ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
v. सम्बन्ध तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'का', 'की', 'के')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| राजभवन | राजा का भवन |
| राजमहल | राजा का महल |
| राजपुत्र | राजा का पुत्र |
| सूर्योदय | सूर्य का उदय |
| चंद्रोदय | चन्द्र का उदय |
प्रश्न: निम्नलिखित में से किस शब्द में संधि और समास दोनों काम करते हैं?
1. राजभवन 2. राजमहल 3. राजपुत्र 4. सूर्योदय ✓
(सूर्योदय = सूर्य + उदय (गुण संधि) & सूर्य का उदय (सम्बन्ध तत्पुरुष समास))
vi. अधिकरण तत्पुरुष समास (विभक्ति - 'में', 'पर')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| कविश्रेष्ठ | कवियों में श्रेष्ठ |
| वनवास | वन में वास |
| साइकिल सवार | साइकिल पर सवार |
| हरफनमौला | हर फन (कला) में मौला (निपुण) |
| आपबीती | आप पर बीती |
इस समास में पहला पद प्रायः विशेषण होता हैं तथा दूसरा पद विशेष्य होता हैं। दूसरे पद (विशेष्य) के प्रधान होने के कारण ही इसे तत्पुरुष का उपभेद माना जाता है।
विशेषण: संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द।
विशेष्य: विशेषण द्वारा जिस शब्द की विशेषता बतायी जाए।
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह | विशेषण | विशेष्य |
|---|---|---|---|
| पीताम्बर | पीला है जो अम्बर (वस्त्र) | पीला | अम्बर |
| नीलाम्बुज | नीला है जो अम्बुज (कमल) | नीला | अम्बुज |
| नीलगाय | नीली है जो गाय | नीली | गाय |
| नीलरत्न | नीला है जो रत्न | नीला | रत्न |
| महात्मा | महान है जो आत्मा | महान | आत्मा |
| परमेश्वर | परम है जो ईश्वर | परम | ईश्वर |
| छुटभैया | छोटा है जो भैया | छोटा | भैया |
| कालीमिर्च | काली है जो मिर्च | काली | मिर्च |
| सज्जन | सत् (अच्छा) है जो जन | सत् | जन |
जहाँ पर एक पद उपमेय और दूसरा पद उपमान हो वहाँ भी कर्मधारय समास होता हैं। इसके विग्रह में प्रायः 'के सदृश', 'के समान' या 'रूपी' शब्द का प्रयोग किया जाता हैं।
उपमेय: जिस व्यक्ति या वस्तु की तुलना की जाए।
उपमान: जिस व्यक्ति या वस्तु से तुलना की जाए।
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह | उपमेय | उपमान |
|---|---|---|---|
| चरण कमल | कमल के सदृश चरण | चरण | कमल |
| कमल नयन | कमल के सदृश नयन | नयन | कमल |
| मृग लोचन | मृग के सदृश लोचन | लोचन | मृग |
| चन्द्र मुख | चन्द्रमा के सदृश मुख | मुख | चन्द्रमा |
| विद्याधन | विद्या रूपी धन | विद्या | धन |
| क्रोधाग्नि | क्रोध रूपी अग्नि | क्रोध | अग्नि |
जिस समास में पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है तथा दूसरा पद (समूह का बोध कराने वाला) प्रधान होता है, उसे द्विगु समास कहते हैं।
द्विगु समास के विग्रह में 'समाहार' या 'समूह' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| दोपहर | दो पहरों का समाहार (समूह) |
| त्रिभुज | तीन भुजाओं का समाहार |
| चौराहा | चार रास्तों का समाहार |
| चतुर्वेद | चार वेदों का समाहार |
| पंजाब | पाँच आबों (नदियों) का समाहार |
| पसेरी | पांच सेरों का समाहार |
| सप्ताह | सात दिनों का समूह |
| सप्तर्षि | सात ऋषियों का समूह |
| अष्टसिद्धि | आठ सिद्धियों का समाहार |
| नवरत्न/नौरत्न | नौ रत्नों का समाहार |
| शताब्दी | शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार |
| तिरंगा | तीन रंगों का समाहार |
द्वन्द्व का अर्थ है- युग्म या जोड़ा। द्वन्द्व समास में प्रथम और दूसरे दोनों पद की प्रधानता होती हैं।
इसके दोनों पद प्रायः 'और', 'या', 'अथवा' जैसे संयोजक शब्दों से जुड़े होते हैं या विग्रह करने पर इन शब्दों का प्रयोग होता है। सामासिक पद में प्रायः योजक चिह्न (-) लगा होता है।
द्वन्द्व समास के तीन भेद होते हैं:
1. इतरेतर द्वन्द्व समास ('और')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| माता-पिता | माता और पिता |
| भाई-बहन | भाई और बहन |
| राम-लक्ष्मण | राम और लक्ष्मण |
| लव-कुश | लव और कुश |
| भरत-शत्रुघ्न | भरत और शत्रुघ्न |
| अन्न-जल | अन्न और जल |
2. समाहार द्वन्द्व समास ('आदि', समूह बोध)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| दाल-रोटी | दाल और रोटी (यहाँ सम्पूर्ण भोजन के अर्थ में) / दाल, रोटी आदि |
| हाथ-पैर | हाथ और पैर (शरीर के अंग)/ हाथ, पैर आदि |
| रुपया-पैसा | रुपया और पैसा (संपत्ति के अर्थ में) / रुपया, पैसा आदि |
| घर-द्वार | घर और द्वार (परिवार के अर्थ में) / घर, द्वार आदि |
| चाय-पानी | चाय, पानी आदि (नाश्ते के अर्थ में) |
3. वैकल्पिक द्वन्द्व समास ('या', 'अथवा')
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| भला-बुरा | भला या बुरा |
| सर्दी-गर्मी | सर्दी या गर्मी |
| धर्माधर्म | धर्म अथवा अधर्म |
| पाप-पुण्य | पाप या पुण्य |
| हानि-लाभ | हानि या लाभ |
| थोड़ा-बहुत | थोड़ा या बहुत |
बहुब्रीहि समास में भी अन्य समासों की भाँति दो पद (पूर्वपद और उत्तरपद) होते हैं।
परन्तु इस समास में न तो प्रथम पद की प्रधानता होती हैं और न ही दूसरे पद की, बल्कि इन दोनों पदों के सहयोग से यह एक नया अर्थ (अन्य पद) देता हैं, और वही अन्य अर्थ प्रधान होता है।
जैसे- चन्द्रशेखर समस्त या सामासिक पद है। इसमें पहला पद चन्द्र तथा दूसरा पद शेखर हैं। इसमें न तो चन्द्र का अर्थ लिया जाता हैं और न ही शेखर का, बल्कि इन्ही दोनों पदों के सहयोग से शंकर के रुप में एक नया अर्थ देता हैं। अतः यह बहुब्रीहि समास हैं।
बहुब्रीहि समास में पहला पद प्रायः विशेषण होता हैं तथा इसका विग्रह पदात्मक न हो करके वाक्यात्तमक होता हैं (अर्थात् विग्रह एक वाक्य या उपवाक्य जैसा होता है)।
इसके मुख्यतः 4 भेद माने जाते हैं:
1. समानाधिकरण बहुब्रीहि (समान विभक्ति)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह | अन्य अर्थ (प्रधान) |
|---|---|---|
| लंबोदर | लंबा है उदर जिसका | गणेश |
| एकदंत | एक है दांत जिसके | गणेश |
| पीताम्बर | पीत (पीले) हैं अम्बर (वस्त्र) जिसके | श्री कृष्ण/विष्णु |
| नेकनाम | नेक है नाम जिसका | विशेष व्यक्ति (प्रसिद्ध) |
| मिठबोला | मीठी है बोली जिसकी | विशेष व्यक्ति |
| दशानन | दश हैं आनन (मुख) जिसके | रावण |
| चतुर्भुज | चार हैं भुजाएँ जिसकी | विष्णु |
| जलज | जल में उत्पन्न होने वाला | कमल |
| प्रधानमंत्री | मंत्रियों में प्रधान है जो | विशेष पद |
| त्रिलोचन | तीन हैं लोचन (नेत्र) जिसके | शिव |
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि (असमान विभक्ति)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह | अन्य अर्थ (प्रधान) |
|---|---|---|
| वीणापाणि | वीणा है पाणि (हाथ) में जिसके | सरस्वती |
| चक्रपाणि | चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके | विष्णु |
| चन्द्रशेखर | चन्द्रमा है सिर पर जिसके | शिव |
| हिरण्यगर्भ | हिरण्य (सोना) है गर्भ में जिसके | ब्रह्मा |
| शूलपाणि | शूल (त्रिशूल) है पाणि (हाथ) में जिसके | शिव |
3. तुल्ययोग / सहबहुब्रीहि ('स' पूर्वक)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| साबल | बल के साथ है जो, वह |
| सदेह | देह के साथ है जो, वह |
| सपरिवार | परिवार के साथ है जो, वह |
| सपत्नीक | पत्नी के साथ है जो, वह |
| सचेत | चेतना के साथ है जो, वह |
4. व्यतिहार बहुब्रीहि (घात-प्रतिघात)
| समस्त/सामासिक पद | विग्रह |
|---|---|
| मुक्का-मुक्की | मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई |
| घूँसा-घूँसी | घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई |
| धक्का-धक्की | धक्के-धक्के से जो लड़ाई हुई |
| लाठा-लाठी | लाठी-लाठी से जो लड़ाई हुई |
| बाता-बाती | बात-बात से जो झगड़ा हुआ |
कर्मधारय समास में पहला पद दूसरे पद की विशेषता बताता है (एक पद विशेषण, दूसरा विशेष्य या उपमान-उपमेय संबंध होता है)। जबकि बहुब्रीहि समास में दोनों पद मिलकर एक नया अर्थ देते हैं और वही तीसरा अर्थ प्रधान होता है।
अन्तर का आधार विग्रह है।
जैसे- पीताम्बर
प्रश्न: पीताम्बर में समास है?
a. तत्पुरुष b. कर्मधारय c. बहुब्रीहि d. अव्ययीभाव
उत्तर: context के अनुसार b या c हो सकता है, पर वरीयता c (बहुब्रीहि) को।
प्रश्न: पीताम्बर में समास है? (वरीयता में पहले बहुब्रीहि होगा)
a. तत्पुरुष b. कर्मधारय c. बहुब्रीहि ✓ d. द्विगु
प्रश्न: पीताम्बर में समास है?
a. तत्पुरुष b. कर्मधारय c. बहुब्रीहि d. b&c दोनों ✓
(विग्रह के आधार पर दोनों संभव हैं, लेकिन यदि एक चुनना हो तो बहुब्रीहि।)
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है और दूसरा पद (समूह) प्रधान होता है। जबकि बहुब्रीहि समास में संख्यावाची पद होने पर भी, दोनों पद मिलकर किसी अन्य (तीसरे) अर्थ को बताते हैं।
अन्तर का आधार विग्रह है।
जैसे- चतुर्भुज
जैसे- तिरंगा
प्रश्न: निम्नलिखित में कौन-सा कथन असत्य है?
1. संधि युक्त शब्दों को अलग-अलग करने को विच्छेद कहते हैं।
2. द्वन्द्व समास में दोनों पदों की प्रधानता होती हैं।
3. जिस समास में पहला पद विशेषण होता हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
4. संधि तत्सम तद्भव तथा उर्दु इत्यादि शब्दों में होता हैं। ✓ (यह कथन असत्य है, संधि मुख्यतः तत्सम में होती है)
प्रश्न: किस समास में उत्तर पद की प्रधानता होती है?
a. तत्पुरुष b. कर्मधारय c. द्विगु d. उपर्युक्त सभी ✓
(कर्मधारय और द्विगु तत्पुरुष के ही उपभेद हैं और इनमें भी उत्तर पद प्रधान होता है)
प्रश्न: निम्नलिखित में कौन तत्पुरुष समास का उदाहरण है?
a. पीताम्बर (कर्मधारय/बहुब्रीहि) b. यथाशक्ति (अव्ययीभाव) c. राजपुत्र ✓ d. उपर्युक्त में कोई नहीं
(राजपुत्र = राजा का पुत्र - सम्बन्ध तत्पुरुष)