लिंग का अर्थ चिन्ह या निशान है। संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु/व्यक्ति के नर या मादा होने का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं। लिंग का निर्धारण करना विद्वानों के लिए भी कठिन कार्य रहा है क्योंकि कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो एक-दूसरे के पर्याय होते हुए भी उनके लिए अलग-अलग लिंग होते हैं।
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| नेत्र | आँख |
| ग्रंथ | पुस्तक |
हिन्दी में लिंग के दो प्रकार होते हैं:
नोट: जतनखत्र ☝️ ☝️
नोट: चाय चटनी स्याही शराब स्त्रीलिंग हैं। शरबत पुल्लिंग है। ☝️
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| नर | नारी |
| देव | देवी |
| लड़का | लड़की |
| घोड़ा | घोड़ी |
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| सेठ | सेठानी |
| जेठ | जेठानी |
| देवर | देवरानी |
| मेहतर | मेहतरानी |
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| धोबी | धोबिन |
| माली | मालिन |
| पंडा | पंडाइन |
| बनिया | बनियाइन |
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| श्रीमान | श्रीमती |
| भगवान् | भगवती |
| भाग्यवान | भाग्यवती |
| पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
|---|---|
| आत्मज | आत्मजा |
| तनय | तनया |
| प्रिय | प्रिया |
सारांश: लिंग का निर्धारण करते समय हमें उनके नियमों के साथ-साथ व्यावहारिक पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिए। नियमों और अपवादों का सही ज्ञान होना आवश्यक है। 🚀
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।
हिन्दी में संख्या का बोध एक या एक से अधिक रूपों में होता है।
हिन्दी में वचन के दो भेद होते हैं:
जैसे: लड़का, घोड़ा, गाय इत्यादि।
जैसे: लड़के, घोड़े, गायें इत्यादि।
Rule 1: आकारान्त पुल्लिंग संज्ञाओं को एकारान्त में बदलने पर बहुवचन बन जाता है।
जैसे:
नोट: सम्बन्ध सूचक आकारान्त पुल्लिंग शब्दों के एकवचन तथा बहुवचन में दोनों समान होते हैं।
जैसे: मामा, नाना, बाबा, काका, चाचा, पापा इत्यादि।
Rule 2: आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं को "एँ" में बदलने पर बहुवचन बन जाता है।
जैसे:
कुछ शब्द सदैव बहुवचन होते हैं:
प्राण, दर्शन, आंसू, होश, बाल, हस्ताक्षर
कुछ शब्द नित्य एकवचन होते हैं:
माल, जनता, सामान, सामग्री, सोना
Rule 3: आकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं को "ए" में बदलने पर बहुवचन बन जाता है।
जैसे:
Rule 4: इकारान्त/ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं को बहुवचन बनाते समय ई को ह्रस्व (इ) करके अन्त में "याँ" लगाने से बहुवचन बन जाता है।
जैसे:
Rule 5: जिन स्त्रीलिंग संज्ञाओं के अन्त में 'या' आता है, उसके ऊपर चन्द्रबिन्दु लगाने से बहुवचन बन जाता है।
जैसे:
Rule 6: कुछ शब्दों को बहुवचन बनाने के लिए गण, वर्ग, जन, लोग, वृन्द इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे:
Note - 1: 'अनेक' बहुवचन है, अतः इसका प्रयोग बहुवचन में 'अनेकों' के रूप में करना गलत होगा।
जैसे:
Note - 2: प्राण, दर्शन, लोग, आँसू, हस्ताक्षर का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है।
जैसे:
Note - 3: आदरणीय व्यक्ति के लिए बहुवचन शब्द का प्रयोग होता है।
कारक 'कृ' धातु से बना है जिसका अर्थ है करने वाला। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध सूचित होता है उसे कारक कहते हैं। कारक का अपना कोई अर्थ नहीं होता है, इसका काम केवल संबंध को सूचित करना है।
कारक को दर्शाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उसे विभक्ति कहते हैं। इसे परसर्ग के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दी में कारकों की कुल संख्या 8 है:
| कारक | विभक्ति/कारक चिन्ह |
|---|---|
| 1. कर्ता | ने |
| 2. कर्म | को |
| 3. करण | से, के द्वारा (साधन के अर्थ में प्रयोग) |
| 4. सम्प्रदान | को, के लिए |
| 5. अपादान | से (अलग होने के अर्थ में) |
| 6. सम्बन्ध | का, की, के, रा, री, रे |
| 7. अधिकरण | में, पर, पै |
| 8. सम्बोधन | हे, हो, अरे, अजी |
जिस शब्द से किसी कार्य के करने का बोध हो उसे कर्ता कारक कहते हैं।
उदाहरण:
क्रिया का प्रभाव जिस पर पड़ता है उसे कर्म कहते हैं।
उदाहरण:
करण का अर्थ है साधन। जहाँ पर 'से' का प्रयोग साधन के अर्थ में किया जाता है वहाँ करण कारक होता है।
उदाहरण:
जिसको कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए वहाँ सम्प्रदान कारक होता है।
उदाहरण:
अपादान का अर्थ है अलग होना। जहाँ पर किसी वस्तु के अलग होने का बोध हो वहाँ अपादान कारक होता है।
उदाहरण:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका अन्य भागों से संबंध सूचित होता है उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं।
उदाहरण:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसके आकार का बोध (दिशा) हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
उदाहरण:
संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने का बोध होता है वहाँ सम्बोधन कारक होता है।
उदाहरण:
नोट: संस्कृत में कारकों की संख्या 7 होती है। इसमें सम्बन्ध कारक का प्रयोग नहीं होता है।