सार्थक शब्दों का वह व्यवस्थित समूह जिसमें कर्ता और क्रिया हो तथा मनुष्य के विचारों को पूर्णतः प्रदान करे उसे वाक्य कहते हैं।
जैसे:
NOTE: वाक्य में कर्ता और क्रिया में परस्पर सामंजस्य होना चाहिए नहीं तो वाक्य व्याकरण की दृष्टि से गलत माना जाएगा।
जैसे:
वाक्य को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:
शब्दों की सहायता से वाक्य निर्माण की प्रक्रिया को वाक्य रचना कहते हैं। रचना के आधार पर वाक्य को तीन भागों में बाँटा गया है:
जिस वाक्य में एक कर्ता और एक क्रिया हो उसे सरल वाक्य कहते हैं।
जैसे:
जिस वाक्य में एक उपवाक्य के अतिरिक्त एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य हों उसे मिश्र वाक्य कहते हैं।
जैसे:
NOTE: जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य हो और अन्य आश्रित(गौण) उपवाक्य हों तथा आपस में 'कि', 'जो', 'वह', 'जितना', 'उतना', 'जैसा', 'वैसा', 'जब', 'तब', 'जहाँ', 'वहाँ', 'जिधर', 'उधर', 'अगर/यदि', 'तो' आदि से मिश्रित हों।
जिस वाक्य में सरल या मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयव द्वारा होता है उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। ऐसे वाक्यों में संयोजक अवयवों को हटा लेने पर ये वाक्य स्वतंत्र हो जाते हैं।
जिन वाक्यों में 'और', 'एवं', 'तथा', 'या', 'अथवा', 'इसलिए', 'अतः', 'फिर भी', 'तो', 'नहीं तो', 'किन्तु', 'परन्तु', 'लेकिन', 'पर' आदि से जुड़े हों तो संयुक्त वाक्य कहलाते हैं।
जैसे:
अर्थ के आधार पर वाक्यों को 8 भागों में बाँटा गया है:
जहाँ पर कर्ता द्वारा कोई कार्य किया जा रहा है वहाँ विधि वाचक वाक्य होता है। विधि वाचक वाक्य को साधारण वाचक वाक्य के नाम से भी जाना जाता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी भाव में नकारात्मकता का भाव पाया जाता है वहाँ पर निषेध वाचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी वाक्य में आदेशात्मकता का भाव निहित हो वहाँ आज्ञा सूचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी वाक्य में किसी प्रकार के प्रश्न किये जाने का बोध हो वहाँ प्रश्नवाचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी प्रकार की इच्छा या शुभकामना का बोध हो वहाँ इच्छावाचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी वाक्य में संदेह प्रकट हो वहाँ संदेहवाचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर किसी प्रकार का आश्चर्य का भाव मिले वहाँ विस्मयवाचक वाक्य होता है।
जैसे:
जहाँ पर एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर हो वहाँ संकेतवाचक वाक्य होता है।
जैसे:
वाक्य निर्माण की प्रक्रिया को वाक्य रचना कहते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित भाग आते हैं:
हिन्दी के वाक्यों में पदक्रम का विशेष महत्व है। इसका अर्थ है कौन-सा पद किसके बाद आएगा। हिन्दी के वाक्यों में पहले कर्ता, तब कर्म, उसके बाद क्रिया का स्थान होता है।
➡️ कर्ता - कर्म - क्रिया
उदाहरण: रोहन किताब पढ़ता है।
🔸 नोट:
प्रायः संज्ञा के पहले विशेषण तथा क्रिया के पहले क्रिया-विशेषण का प्रयोग होता है।
उदाहरण: अच्छे बच्चे धीरे-धीरे दौड़ते हैं।
निपात का प्रयोग जिस शब्द पर बल देना हो, उसके बाद किया जाता है। (भी, ही, तक)
उदाहरण:
यदि कर्ता के साथ "ने" परसर्ग का प्रयोग न हुआ हो, तो क्रिया कर्ता के अनुसार होती है।
उदाहरण:
यदि कर्ता के साथ "ने" परसर्ग का प्रयोग हुआ हो तथा कर्म के साथ किसी परसर्ग का प्रयोग न हुआ हो, तो उसकी क्रिया कर्म के अनुसार होती है।
उदाहरण:
यदि कर्ता के साथ "ने" परसर्ग का प्रयोग तथा कर्म के साथ "को" परसर्ग का प्रयोग हुआ हो, तो उसकी क्रिया पुल्लिंग तथा एकवचन में होती है।
उदाहरण:
यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष से अनेक विभक्ति रहित कर्ता हो तथा अन्तिम कर्ता के पहले "और" संयोजक अवयव आया हो, तो उसकी क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होती है।
उदाहरण:
यदि किसी वाक्य में एक कर्ता पुल्लिंग और दूसरा कर्ता स्त्रीलिंग हो, तो उसकी क्रिया पुल्लिंग तथा बहुवचन में होती है।
उदाहरण:
उपवाक्य वाक्य का भाग होता है जिसका अपना अर्थ होता है। इसमें उद्देश्य (कर्ता) और विधेय (क्रिया) होता है।
उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं:
संज्ञा उपवाक्य वह आश्रित उपवाक्य है जो संज्ञा के भाँति प्रयुक्त होता है। यह उपवाक्य प्रायः 'कि' से प्रारम्भ होता है।
संज्ञा उपवाक्य का प्रारम्भ 'कि' से होता है।
विशेषण उपवाक्य वह आश्रित उपवाक्य है जो विशेषण की भाँति प्रयुक्त होता है। इसमें 'जो', 'जैसा', 'जितना' इत्यादि का प्रयोग होता है।
क्रिया-विशेषण उपवाक्य वह आश्रित उपवाक्य है जो क्रिया-विशेषण की भाँति प्रयुक्त होता है। इसमें 'जब', 'ज्यों', 'जहाँ', 'जिधर', 'यद्यपि' इत्यादि का प्रयोग होता है।
💡 इन उपवाक्यों का सही प्रयोग करके हम अपने वाक्यों को अधिक स्पष्ट और प्रभावी बना सकते हैं।