सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किमी. है और इसका आकार
लगभग त्रिभुजाकार था।
यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के तीन प्रमुख देशों - भारत, पाकिस्तान और
अफगानिस्तान में फैली हुई थी।
भौगोलिक सीमा:
- उत्तरी सीमा: माण्डा (जम्मू-कश्मीर), चिनाब नदी के किनारे।
- दक्षिणी सीमा: दैमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र), प्रवरा नदी
(गोदावरी की सहायक) के किनारे।
- पूर्वी सीमा: आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश), हिण्डन नदी के
किनारे।
- पश्चिमी सीमा: सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान, पाकिस्तान), दाश्क नदी
के किनारे।
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1000 से अधिक स्थानों का पता चला है। स्वतंत्रता के बाद
सर्वाधिक संख्या में हड़प्पन स्थलों की खोज गुजरात में हुई है।
हड़प्पा
- स्थिति: साहीवाल जिला, पंजाब प्रांत (पाकिस्तान), रावी नदी के बाएं तट पर।
- खोज/उत्खनन: 1921 में दयाराम साहनी द्वारा।
- विशेषताएँ: स्टुअर्ट पिग्गट ने इसे 'अर्ध-औद्योगिक' नगर और मोहनजोदड़ो के साथ 'एक विशाल
साम्राज्य की जुड़वां राजधानी' कहा है।
- साक्ष्य: अन्न-भंडार, कब्रिस्तान R-37, पारदर्शी वस्त्र पहने मूर्ति, शंख का बैल, कांस्य
दर्पण, लकड़ी की ओखली में गेहूँ-जौ, मछुआरे का चित्र, स्वास्तिक व चक्र के साक्ष्य, लाल बलुआ पत्थर
से बना पुरुष धड़, लिंग-योनि के प्रतीक।
मोहनजोदड़ो
- अर्थ: सिंधी भाषा में 'मृतकों का टीला' (Mound of the Dead)।
- स्थिति: लरकाना जिला, सिंध प्रांत (पाकिस्तान), सिंधु नदी के तट पर।
- खोज/उत्खनन: 1922 में राखालदास बनर्जी द्वारा।
- विशेषताएँ: शासन-व्यवस्था जनतंत्रात्मक थी। यहाँ से प्राप्त सड़कें समकोण पर काटती थीं
(राजपथ 9.15 मी. चौड़ा)। घरों में कुएँ, रसोई, स्नानागार आदि की व्यवस्था थी।
- साक्ष्य: विशाल स्नानागार, विशाल अन्नागार, पुरोहितों का आवास, महाविद्यालय, 16 मकानों का
बैरक, कांस्य निर्मित नग्न महिला की मूर्ति ('द्रवी मोम विधि' से बनी), दाढ़ी वाले पुजारी की
मूर्ति, एक श्रृंगी पशुओं वाली मुद्राएँ, नाव के चित्र।
लोथल
- स्थिति: अहमदाबाद (गुजरात), भोगवा नदी के किनारे।
- खोज/उत्खनन: 1954 में खोज, 1957-58 में एस. आर. राव द्वारा
उत्खनन।
- विशेषताएँ: यह एक प्रमुख बंदरगाह (Port Town/Dockyard) था।
एस. आर. राव ने इसे 'लघु हड़प्पा' या 'लघु मोहनजोदड़ो' कहा है।
- साक्ष्य: गोदीवाड़ा (Dockyard), वृत्ताकार तथा चौकोर अग्निवेदिका, चावल व बाजरे का साक्ष्य,
फारस की मुहर, घोड़े की मृण्मूर्ति, तीन युग्मित समाधियाँ, हाथी
दाँत का पैमाना, चालाक लोमड़ी का चिह्न।
कालीबंगा
- अर्थ: 'काले रंग की चूड़ियाँ'।
- स्थिति: हनुमानगढ़ (राजस्थान), घग्घर नदी के किनारे।
- खोज/उत्खनन: 1952 में अमलानंद घोष द्वारा खोज, 1961 में
बी.बी. लाल व बी.के. थापड़ द्वारा उत्खनन।
- विशेषताएँ: यहाँ दुर्ग और नगर, दोनों अलग-अलग रक्षा प्राचीरों से घिरे थे। जल निकासी के लिए
लकड़ी की नालियों का प्रयोग हुआ था।
- साक्ष्य: जुते हुए खेत का साक्ष्य, भूकम्प के साक्ष्य, अग्नि
हवन कुंड (7 वेदिकाएँ), अलंकृत ईंट, चूड़ियाँ, एक साथ दो फसल बोने का साक्ष्य, ऊँट की हड्डियाँ,
सींगयुक्त देवता की मृण-पट्टिका।
धौलावीरा
- स्थिति: कच्छ जिला (गुजरात), खादिर बेट द्वीप पर।
- खोज/उत्खनन: 1967-68 में जे.पी. जोशी द्वारा खोज, 1990-91 में आर.
एस. बिष्ट द्वारा उत्खनन।
- विशेषताएँ: यह नगर तीन भागों में विभाजित था- दुर्ग, मध्यम नगर और
निचला नगर। यहाँ उत्कृष्ट जल संरक्षण/प्रबंधन प्रणाली थी। शैलकृत स्थापत्य के प्रमाण
मिले हैं।
- साक्ष्य: एकमात्र खेल का मैदान (स्टेडियम), सूचना पट्ट (साइन बोर्ड)।
चन्हूदड़ो
- स्थिति: सिंध प्रांत (पाकिस्तान), सिंधु नदी के किनारे।
- खोज/उत्खनन: 1931 में एन.जी. मजूमदार द्वारा खोज, 1935 में जे.एच.
मैके द्वारा उत्खनन।
- विशेषताएँ: यह एकमात्र स्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली
हैं। दुर्गीकरण के साक्ष्य नहीं हैं। यह मनके, सीप, अस्थि और मुद्रा बनाने का प्रमुख केंद्र था।
यहाँ झूकर एवं झांगर संस्कृति के भी साक्ष्य मिले हैं।
- साक्ष्य: मनके बनाने का कारखाना, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पद-चिह्न, लिपिस्टिक,
काजल, पाउडर, कंघा, तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों वाली मुद्रा।
अन्य महत्वपूर्ण स्थल
- सुरकोटदा (गुजरात): यहाँ से घोड़े की अस्थियों का अवशेष, कलश
शवाधान और तराजू का पलड़ा मिला है।
- बनावली (हरियाणा): यहाँ मिट्टी का हल (खिलौना), बढ़िया किस्म
का जौ, और सड़कों पर बैलगाड़ी के पहिए का साक्ष्य मिला है। जल निकास प्रणाली का अभाव था। नगर योजना
शतरंज के जाल के आकार की थी।
- राखीगढ़ी (हरियाणा): यह भारत में स्थित सबसे बड़ा हड़प्पन
पुरास्थल है। यहाँ से ताम्र उपकरण और हड़प्पा लिपि युक्त मुद्रा मिली है।
- रोपड़ (पंजाब): यहाँ मानव के साथ कुत्ते दफनाने का साक्ष्य
और तांबे की कुल्हाड़ी मिली है। स्वतंत्रता के बाद उत्खनित पहला स्थल।
- रंगपुर (गुजरात): यहाँ ज्वार-बाजरा, तीन संस्कृतियों के अवशेष और धान की भूसी मिली है।
- दैमाबाद: हड़प्पाकालीन ताम्र रथ प्राप्त हुआ है।