भारतीय जलवायु
परिचय एवं कारक
भारत का आधा भाग
कर्क रेखा
के उत्तर में और शेष दक्षिण में है।
जलवायु भिन्नता के कारण:
उत्तर में
हिमालय
(ठंडी हवाओं को रोकना)।
दक्षिण में
3 ओर से समुद्र
(मानसूनी प्रभाव)।
शीतकाल में: स्थलखण्ड से हवाएं समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।
मानसूनी हवाएँ
मानसूनी हवाएँ भारत की प्रायद्वीपीय संरचना के कारण
2 भागों
में विभक्त हो जाती हैं:
A.
बंगाल की खाड़ी
B.
अरब सागर
बंगाल की खाड़ी के मानसून को
दक्षिण-पूर्वी मानसून
तथा अरब सागर के मानसून को
दक्षिण-पश्चिम मानसून
कहा जाता है।
अण्डमान निकोबार
मानसून से सबसे पहले प्रभावित होता है - दक्षिण-पूर्वी मानसून
मुख्य भूमि में सर्वप्रथम
केरल
प्रभावित होता है - दक्षिण-पश्चिम मानसून
🌧️
मानसून की प्रक्रिया:
मानसूनी हवाएँ दो तरफ से भारत में प्रवेश करती हैं और परस्पर टकराकर भारी वर्षा करती हैं।
पुनः हल्के होकर ये बादल ऊपर उठते हैं, जिससे ये
जेट स्ट्रीम
की पकड़ में आ जाते हैं।
जेट स्ट्रीम इसे चक्राकार में पूरे भारत में वितरित कर देती है।
मानसून पूर्व वर्षा
21 मार्च
से भारत का तापमान बढ़ना प्रारम्भ होता है।
जिससे किसी-किसी क्षेत्र में वायुदाब उत्पन्न हो जाता है, फलस्वरूप स्थानीय हवाएँ बादलों के साथ यहाँ वर्षा करती हैं।
यही
मानसून पूर्व की वर्षा
है।
विभिन्न क्षेत्रों में मानसून पूर्व वर्षा के स्थानीय नाम
क्षेत्र
स्थानीय नाम
कर्नाटक
मैंगो शॉवर, काफी शॉवर, चेरी ब्लॉसम
दक्षिण भारत
नार्वेस्टर
पश्चिमी बंगाल
काल बैसाखी
असम
टी-शॉवर
इस वर्षा के बाद तापमान गिरता है जिससे मानसून की गति प्रभावित होती है।
पश्चिमी विक्षोभ
भारत में निरंतर पश्चिम से ठण्डी हवाओं का आगमन होता है।
इन्हें
पश्चिमी विक्षोभ
के नाम से जाना जाता है।
शीतकाल में यह
शीत लहर तथा वर्षा
का कारण बनती है।
लू
थार के मरुस्थल
से चलने वाली गर्म हवाएँ जो शरीर की नमी समाप्त कर देती हैं।
ये हवाएँ मुख्य रूप से
गर्मियों के मौसम
में चलती हैं।
इनका प्रभाव मुख्य रूप से
उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत
में देखा जाता है।